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Wednesday, July 30, 2025

The Last Age: Lord Kalki, Prophecy, and the Final War for Peace

Thursday, July 17, 2025

India’s Moment: How Bureaucratic Reform and Meritocratic Politics Can Outperform China


India’s Moment: How Bureaucratic Reform and Meritocratic Politics Can Outperform China

The Kalkiist Blueprint from Kathmandu Offers a Path to Double-Digit Growth

India is often described as a nation of great potential but also great paradoxes. A billion-plus people, world-class universities, a globally respected diaspora, a rising tech sector—and yet, it remains shackled by a bureaucratic system bloated with inefficiency and corruption, and political parties more focused on patronage than performance. But what if that could change? What if India could rewire its state machinery to function with merit, integrity, and transparency?

The answer to this lies not in fantasy but in a bold set of proposals emerging from an unexpected place: Kathmandu. The Kalkiism Research Center, nestled in the capital of Nepal, has quietly developed a comprehensive policy architecture that could revolutionize governance across the Global South. And India may be its most powerful test case.


The China Comparison—and Opportunity

China’s political system, for all its authoritarian flaws, has delivered decades of rapid economic growth through what many analysts call a “meritocratic bureaucracy.” Technocrats rise through party ranks based on performance. Infrastructure gets built. Five-year plans become realities.

India, on the other hand, is the world’s largest democracy—and its most unwieldy. Its bureaucratic machinery, inherited from the British Raj, is notorious for red tape and corruption. Promotions are often based on seniority or proximity to power, not performance. Meanwhile, political parties frequently act more like electoral machines than forums for policy innovation.

But if India could combine its democratic freedoms with a truly meritocratic bureaucracy and party structure, it could outpace even China in economic performance—and do so without sacrificing civil liberties.


What Needs Fixing?

  1. Bureaucracy

    • Promotions need to be performance-based, not seniority-based.

    • Lateral entry from private and academic sectors should be expanded.

    • Real-time digital monitoring of public service delivery should be standard.

  2. Corruption

    • Transparent procurement platforms.

    • Strong whistleblower protections.

    • Time-bound grievance redressal.

  3. Political Parties

    • Mandatory internal elections.

    • Candidate selection based on qualifications and public service, not caste calculus or cash power.

    • Public funding linked to transparency metrics.

These aren’t pipe dreams. These are concrete, implementable proposals—articulated in full detail by the Kalkiism Research Center in Kathmandu, which has modeled policy blueprints inspired by a fusion of ancient wisdom and modern political science.


The Kalkiist Alternative: An Indian Application

Kalkiism, drawing its name from the prophesied 10th avatar of Vishnu—Kalki, the restorer of dharma—is a socio-economic and political framework that champions justice, transparency, merit, and inclusive growth. Its Kathmandu-based think tank has developed policy prototypes for:

  • Meritocratic civil service reforms

  • Digital governance and paperless service delivery

  • Zero-interest, zero-collateral public banking

  • Universal education and healthcare

  • Mass job creation via public-private innovation corridors

India, with its massive digital infrastructure (like Aadhaar and UPI), is uniquely positioned to pilot these ideas at scale.


Why This Could Unleash Double-Digit Growth

Economic growth doesn’t come from slogans—it comes from systems. And India’s current system is leaking potential. If bureaucrats become problem-solvers instead of gatekeepers, if politicians are policy experts instead of caste arithmeticians, and if public services are delivered in days instead of months—India could dramatically reduce its friction costs.

Consider what India has already achieved despite its inefficiencies:

  • A global IT powerhouse.

  • A space program that lands on the Moon.

  • The world's most sophisticated digital payment system.

Now imagine what it could do with a smart state.

Double-digit GDP growth is not a fantasy. It’s a function of unleashing productivity, reducing inefficiency, and investing in human capital. The Kalkiist framework offers just that.


The Call to Action

India’s youth are ready. Its tech is world-class. Its market is vast. What it needs is a political and bureaucratic system that matches the ambition of its people.

The time has come to turn to bold reforms. And sometimes, the clearest vision doesn’t come from within—it comes from across the border.

The blueprints are ready. The Kalkiism Research Center has laid the groundwork. The question is—will India rise to the occasion and seize its destiny?

If it does, it won’t just match China. It might just surpass it—and lead the Global South into a new age of prosperity.


#Kalkiism #IndiaReforms #Meritocracy #BureaucraticReform #DoubleDigitGrowth #NewIndia






भारत का सुनहरा अवसर: कैसे नौकरशाही सुधार और मेरिट आधारित राजनीति चीन से बेहतर प्रणाली बना सकते हैं
काठमांडू स्थित कल्किवादी अनुसंधान केंद्र से प्राप्त खाका दो अंकों की आर्थिक वृद्धि का रास्ता दिखाता है

भारत को अक्सर एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखा जाता है जिसकी संभावनाएँ अपार हैं, लेकिन विरोधाभास भी उतने ही गहरे हैं। एक अरब से अधिक की आबादी, विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय, वैश्विक स्तर पर सम्मानित प्रवासी समुदाय, और एक उभरता हुआ टेक क्षेत्र—फिर भी यह देश एक ऐसी नौकरशाही से जकड़ा हुआ है जो अक्षमता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। राजनीतिक दलों का हाल भी कुछ खास बेहतर नहीं, जो नीति से ज़्यादा जातिगत गणित और व्यक्ति-पूजा पर चलते हैं।

लेकिन क्या यह सब बदला जा सकता है? क्या भारत एक ऐसी शासन प्रणाली विकसित कर सकता है जो योग्यता, ईमानदारी और पारदर्शिता पर आधारित हो?

इसका उत्तर कोई कल्पना नहीं है—बल्कि एक ठोस प्रस्ताव है जो एक अनपेक्षित स्थान से आ रहा है: काठमांडू, नेपाल। वहीं स्थित कल्किवादी अनुसंधान केंद्र ने एक ऐसा व्यापक नीति खाका विकसित किया है जो पूरे ग्लोबल साउथ में शासन व्यवस्था को नया जीवन दे सकता है। भारत इसके लिए सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली परीक्षण क्षेत्र हो सकता है।


चीन की तुलना—और भारत का अवसर

चीन की राजनीतिक प्रणाली, भले ही अधिनायकवादी हो, लेकिन उसने “मेरिट आधारित नौकरशाही” के ज़रिये दशकों तक तेज़ आर्थिक विकास किया है। टेक्नोक्रेट्स को प्रदर्शन के आधार पर पदोन्नति मिलती है, इंफ्रास्ट्रक्चर समय पर बनता है, और योजनाएँ वास्तविकता बनती हैं।

भारत, इसके विपरीत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है—और शायद सबसे भारी-भरकम भी। ब्रिटिश राज से विरासत में मिली नौकरशाही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है। पदोन्नति अक्सर वरिष्ठता या सत्ता के समीपता के आधार पर होती है, न कि प्रदर्शन के आधार पर। और राजनीतिक दल अक्सर नीति के केंद्र नहीं बल्कि चुनावी मशीनों की तरह कार्य करते हैं।

लेकिन अगर भारत अपने लोकतंत्र को एक योग्यता आधारित नौकरशाही और राजनीतिक ढाँचे के साथ जोड़ दे, तो वह चीन से भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है—और वह भी बिना नागरिक स्वतंत्रताओं की बलि चढ़ाए।


क्या बदलने की ज़रूरत है?

  1. नौकरशाही में सुधार

    • पदोन्नति प्रदर्शन आधारित हो, न कि केवल वरिष्ठता आधारित।

    • निजी और शैक्षणिक क्षेत्रों से प्रतिभाशाली लोगों को ‘लेटरल एंट्री’ के माध्यम से भर्ती किया जाए।

    • सरकारी सेवा वितरण की डिजिटल निगरानी अनिवार्य की जाए।

  2. भ्रष्टाचार पर लगाम

    • पारदर्शी ई-प्रोक्योरमेंट प्रणाली लागू हो।

    • व्हिसलब्लोअर्स को मज़बूत कानूनी सुरक्षा मिले।

    • जन शिकायतों का समयबद्ध समाधान हो।

  3. राजनीतिक दलों का पुनर्गठन

    • आंतरिक चुनाव अनिवार्य हों।

    • उम्मीदवारों का चयन योग्यता और जनसेवा के आधार पर हो—न कि जाति या धनबल के आधार पर।

    • पारदर्शिता के अनुसार सार्वजनिक फंडिंग निर्धारित की जाए।

ये सब सुनने में आदर्श लग सकते हैं, लेकिन ये काल्पनिक नहीं हैं। कल्किवादी अनुसंधान केंद्र ने इन सभी प्रस्तावों को व्यावहारिक रूप में विस्तार से तैयार किया है—प्राचीन भारतीय दर्शन और आधुनिक राजनीतिक विज्ञान का संयोजन करते हुए।


कल्किवादी विकल्प: भारत में कैसे लागू हो सकता है

कल्किवाद, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के नाम पर आधारित है—जो धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अवतरित होते हैं। यह सिद्धांत न्याय, पारदर्शिता, योग्यता और समावेशी विकास को प्राथमिकता देता है। इस सिद्धांत के तहत काठमांडू स्थित थिंक टैंक ने निम्नलिखित योजनाएँ विकसित की हैं:

  • मेरिट आधारित सिविल सेवा सुधार

  • डिजिटल गवर्नेंस और पेपरलेस सेवा वितरण

  • ब्याज रहित, गारंटी रहित सार्वजनिक बैंकिंग प्रणाली

  • सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी

  • सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन

भारत, जिसकी डिजिटल संरचना पहले से ही मजबूत है (आधार, UPI आदि), इन योजनाओं को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है।


क्यों यह भारत को दो अंकों की विकास दर दे सकता है

आर्थिक विकास नारेबाज़ी से नहीं होता—वह सिस्टम से आता है। भारत की मौजूदा प्रणाली लाखों करोड़ों की संभावनाओं को व्यर्थ जाने दे रही है। अगर नौकरशाह समाधानदाता बनें—रुकावट नहीं, अगर नेता नीति निर्माता बनें—जातिगत गणक नहीं, अगर सेवाएँ महीनों की जगह हफ्तों में मिलें—तो भारत की उत्पादकता कई गुना बढ़ सकती है।

और सोचिए, भारत ने ये सब कुछ इन कमियों के बावजूद हासिल किया है:

  • वैश्विक स्तर पर अग्रणी IT सेक्टर

  • चंद्रमा पर पहुँचने वाला अंतरिक्ष कार्यक्रम

  • सबसे उन्नत डिजिटल भुगतान प्रणाली

अब सोचिए क्या हो सकता है जब भारत की व्यवस्था स्मार्ट बन जाए।

दो अंकों की जीडीपी वृद्धि कोई कल्पना नहीं है। यह उत्पादकता बढ़ाने, अक्षमता घटाने और मानव संसाधन में निवेश करने का परिणाम हो सकता है। और कल्किवादी ढांचा ठीक यही करता है।


आह्वान: क्या भारत तैयार है?

भारत की युवा शक्ति तैयार है। उसकी तकनीक विश्वस्तरीय है। बाज़ार विशाल है। अब ज़रूरत है एक ऐसी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था की जो इन सबकी आकांक्षाओं से मेल खा सके।

बदलाव का समय आ चुका है। और कभी-कभी सबसे स्पष्ट दृष्टि सीमा पार से आती है।

खाका तैयार है। कल्किवादी अनुसंधान केंद्र ने आधारशिला रख दी है। सवाल यह है—क्या भारत इस अवसर को पहचान कर इतिहास रचेगा?

अगर हाँ—तो भारत केवल चीन की बराबरी ही नहीं करेगा, बल्कि उससे आगे निकलकर ग्लोबल साउथ को एक नए युग में ले जाएगा।


#कल्किवाद #भारत_सुधार #मेरिटocracy #नौकरशाही_सुधार #DoubleDigitGrowth #NewIndia



The Drum Report: Markets, Tariffs, and the Man in the Basement (novel)
World War III Is Unnecessary
Grounded Greatness: The Case For Smart Surface Transit In Future Cities
The Garden Of Last Debates (novel)
Deported (novel)
Empty Country (novel)
Trump’s Default: The Mist Of Empire (novel)
The 20% Growth Revolution: Nepal’s Path to Prosperity Through Kalkiism
Rethinking Trade: A Blueprint for a Just and Thriving Global Economy
The $500 Billion Pivot: How the India-US Alliance Can Reshape Global Trade
Trump’s Trade War
Peace For Taiwan Is Possible
Formula For Peace In Ukraine
A 2T Cut
Are We Frozen in Time?: Tech Progress, Social Stagnation
The Last Age of War, The First Age of Peace: Lord Kalki, Prophecies, and the Path to Global Redemption
AOC 2028: : The Future of American Progressivism

Thursday, October 10, 2024

Only The Kalkiist Economy Can Fully And Fairly Harvest AI



AI (Artificial Intelligence) को हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहा जाता है। यह कंप्यूटर विज्ञान की एक शाखा है जो कंप्यूटर सिस्टम्स को "स्मार्ट" बनाने का काम करती है ताकि वे इंसानों जैसी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन कर सकें। इसका उद्देश्य मशीनों को इस तरह विकसित करना है कि वे सोच-समझकर निर्णय ले सकें, समस्याओं का समाधान कर सकें, सीख सकें, और विभिन्न कार्यों को अपने आप पूरा कर सकें।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कुछ प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं:

1. मशीन लर्निंग (Machine Learning): यह AI का एक हिस्सा है जो मशीनों को डेटा से सीखने और अपने अनुभवों के आधार पर प्रदर्शन को सुधारने में मदद करता है।
2. नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (Natural Language Processing): इसके माध्यम से मशीनें इंसानी भाषाओं को समझ सकती हैं और उन पर आधारित कार्य कर सकती हैं।
3. रोबोटिक्स: AI का उपयोग रोबोट्स में किया जाता है ताकि वे स्वचालित रूप से कार्य कर सकें।
4. कंप्यूटर विजन (Computer Vision): इसमें कंप्यूटर को इमेज और वीडियो को समझने की क्षमता दी जाती है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग स्वास्थ्य, वित्त, शिक्षा, परिवहन, और मनोरंजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।



"The Kalkiist Economy Can Fully and Fairly Harvest AI" refers to a theoretical or visionary economic model that aligns with the principles of a "Kalkiist" philosophy—presumably based on the concept of Kalki, the prophesied future incarnation of Vishnu in Hindu tradition, associated with righteousness, renewal, and a new era of fairness. This statement suggests that a Kalkiist economy would be the only economic system capable of fully utilizing and fairly distributing the benefits of artificial intelligence.

Let’s break down the concept:

1. Kalkiist Economy:

- A Kalkiist economy could imply an economic model rooted in the idea of righteousness, fairness, and balance, potentially inspired by the concept of Kalki as the destroyer of corruption and bringer of a just world.
- It would likely emphasize equity, ethical use of technology, and a balanced distribution of wealth and opportunities.
- The economy might focus on holistic well-being, ensuring that AI advancements are not just leveraged by a select few, but benefit all sections of society.

2. Fully Harvesting AI:

- AI, when fully harvested, means leveraging its maximum potential across all sectors—education, healthcare, governance, finance, and more.
- The Kalkiist economy would ensure that AI reaches its full potential by:
- Promoting inclusive innovation and ensuring equal access to AI-powered solutions for all individuals and communities.
- Avoiding monopolistic practices where only large corporations and a select elite control AI technology.
- Using AI to improve social systems, productivity, and sustainability without causing harm to marginalized groups.

3. Fairly Harvesting AI:

- Fairness in the context of AI means ethical development and equitable distribution of the benefits AI brings.
- A Kalkiist economy would ensure that the fruits of AI are shared equally, preventing situations where AI creates or exacerbates inequalities.
- It would likely emphasize regulation and ethical oversight to prevent misuse of AI (e.g., in surveillance, biased algorithms, job displacement without proper safeguards).
- This economy would address concerns about the economic divide caused by AI automation and would seek to reskill the workforce for future industries.

Key Principles of a Kalkiist Economy Using AI:

1. Ethical AI Development: Ensuring AI is built with the highest ethical standards to avoid harm and promote welfare.
2. Universal Access: Everyone, regardless of their socio-economic status, should benefit from AI, ensuring equal access to technological advancements.
3. Sustainable Growth: AI is used not just for profit but for creating sustainable and environmentally friendly solutions.
4. Human-Centric Approach: AI should augment human potential, not replace it. Kalkiist philosophy might emphasize the symbiosis of AI with human creativity, emotions, and intelligence.
5. Regulation for Fairness: Strong regulations and policies to ensure that AI is not weaponized for exploitation, but rather used for the common good.

In summary, the idea behind "The Kalkiist Economy Can Fully And Fairly Harvest AI" is that only an economy built on principles of fairness, justice, and balance, like a Kalkiist model, would ensure that AI technology reaches its full potential while being ethically and equitably distributed across society. It suggests that current capitalist or unequal economic systems may not be equipped to handle the disruptive power of AI in a way that benefits all.



"केवल कल्कीय अर्थव्यवस्था ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का पूर्ण और निष्पक्ष रूप से उपयोग कर सकती है" का तात्पर्य एक ऐसे सैद्धांतिक या आदर्श आर्थिक मॉडल से है, जो कल्कि के सिद्धांतों पर आधारित हो। हिंदू परंपरा में कल्कि को भविष्य के अवतार के रूप में देखा जाता है, जो धर्म की स्थापना और एक नए युग की शुरुआत के साथ जुड़े होते हैं। इस विचारधारा के अनुसार, एक कल्कीय अर्थव्यवस्था वह एकमात्र प्रणाली होगी जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के सभी लाभों का पूरी तरह से और निष्पक्ष रूप से उपयोग और वितरण कर सकेगी।

आइए इस विचार को विस्तार से समझते हैं:

1. कल्कीय अर्थव्यवस्था:

- एक कल्कीय अर्थव्यवस्था से तात्पर्य एक ऐसे आर्थिक मॉडल से हो सकता है जो धर्म, न्याय, और संतुलन के सिद्धांतों पर आधारित हो, जिसमें कल्कि के अवतार का उद्देश्य भ्रष्टाचार का अंत और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हो।
- यह अर्थव्यवस्था न्यायसंगत, नैतिक रूप से सही तकनीकी उपयोग और संपत्ति तथा अवसरों का समान वितरण सुनिश्चित करेगी।
- यह मॉडल समग्र कल्याण पर ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि AI से होने वाले लाभ सभी वर्गों तक पहुंचे, न कि केवल कुछ विशेष समूहों तक।


2. AI का पूर्ण उपयोग:

- AI का पूर्ण उपयोग करने का अर्थ है इसका अधिकतम लाभ उठाना और इसे शिक्षा, स्वास्थ्य, शासन, वित्त आदि सभी क्षेत्रों में लागू करना।
- कल्कीय अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि AI का अधिकतम उपयोग निम्नलिखित तरीकों से हो:
- समावेशी नवाचार को बढ़ावा देना, ताकि सभी व्यक्तियों और समुदायों को AI से लाभ मिल सके।
- यह सुनिश्चित करना कि केवल बड़े कॉर्पोरेट्स या चुनिंदा लोग AI पर नियंत्रण न करें।
- सामाजिक प्रणालियों, उत्पादकता और स्थिरता को सुधारने के लिए AI का उपयोग, बिना किसी समूह को नुकसान पहुंचाए।

3. AI का निष्पक्ष उपयोग:

- AI के संदर्भ में निष्पक्षता का अर्थ है नैतिक विकास और इसके लाभों का समान वितरण।
- एक कल्कीय अर्थव्यवस्था यह सुनिश्चित करेगी कि AI से होने वाले लाभों का समान रूप से वितरण हो, ताकि इससे असमानताएं न बढ़ें।
- यह अर्थव्यवस्था AI के दुरुपयोग को रोकने के लिए कड़ी निगरानी और नैतिक नियंत्रण पर ध्यान देगी (जैसे, निगरानी में दुरुपयोग, पक्षपाती एल्गोरिदम, नौकरियों का नुकसान)।
- AI से उत्पन्न आर्थिक विभाजन को दूर करने के लिए यह अर्थव्यवस्था नए उद्योगों के लिए कार्यबल को नए कौशल सिखाने पर जोर देगी।

एक कल्कीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख सिद्धांत, जो AI का उपयोग करती है:

1. नैतिक AI विकास: यह सुनिश्चित करना कि AI का निर्माण उच्चतम नैतिक मानकों के साथ किया जाए, ताकि इसका कोई गलत उपयोग न हो और यह समाज के कल्याण के लिए हो।
2. सार्वजनिक पहुंच: चाहे कोई भी व्यक्ति या समुदाय हो, AI से होने वाले लाभों तक सभी की पहुंच होनी चाहिए।
3. सतत विकास: AI का उपयोग केवल मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल समाधान विकसित करने के लिए हो।
4. मानव-केंद्रित दृष्टिकोण: AI का उद्देश्य मानव क्षमता को बढ़ाना होना चाहिए, न कि उसे प्रतिस्थापित करना। कल्कीय विचारधारा शायद AI और मानव रचनात्मकता, भावनाओं, और बुद्धिमत्ता के बीच सहजीविता पर जोर देगी।
5. न्यायसंगत नियंत्रण: AI का शोषण न हो, इसके लिए मजबूत नियम और नीतियां बनाना ताकि यह सभी के भले के लिए उपयोग हो।

सारांश में, "केवल कल्कीय अर्थव्यवस्था ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पूर्ण और निष्पक्ष रूप से उपयोग कर सकती है" का विचार यह है कि केवल एक ऐसी अर्थव्यवस्था, जो न्याय, धर्म और संतुलन के सिद्धांतों पर आधारित हो, AI तकनीक का अधिकतम और नैतिक रूप से समान वितरण सुनिश्चित कर सकती है। यह सुझाव देता है कि वर्तमान पूंजीवादी या असमान आर्थिक प्रणालियां AI की शक्तियों को उस तरीके से संभालने में सक्षम नहीं हैं, जिससे सभी को लाभ हो।

Friday, October 04, 2024

भगवान कल्कि आ चुके



कलि युग का शुरुवात कैसे हुवा? ५,००० साल पुरानी बात है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धा अर्जुन के बेटे अभिमन्यु के बेटे राजा परिक्षित को कलि पुरुष ने अनुरोध किया: "हमें रहने के लिए जगह दो।" कलि पुरुष कौन? वही जिसे इशाई, यहुदी और मुसलमान शैतान या सेटन कहते हैं। 

पिछले युगों के घटनाएं इस कलि युग के लोगों को जादुइ लगते हैं। तो पिछले युग के लोगों को भी इस कलि युग के घटनाएं असंभव और काल्पनिक लगते थे। कनिष्ठ पांडव द्वय नकुल सहदेव ने सपने देखे। भगवान श्री कृष्ण को कहा। तो श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि जो देखा कलि युग में वही सब होने को है। तो नकुल सहदेव को अजीब लगा। ऐसा भी होना संभव है क्या? लोग एक दुसरे से उतना गलत व्यवहार करेंगे? 

धर्म का क्षय होने से क्या होता है? लोगों का एक दुसरे के प्रति व्यवहार ख़राब होते चला जाता है। अगर आप को कलि युग से समस्या है जहाँ धर्म चार में सिर्फ एक पैर पर खड़े रहती है तो आप को नर्क में काफी समस्या होगी। नर्क जाने से बचें। अच्छा कर्म करें। 

मृत्यु शैया पर भीष्म पितामह ने भगवान श्री कृष्ण को कहा: "आप तो ईश्वर हैं ना?" उनके कहने का तात्पर्य था क्या ऐसा छलकपट ईश्वर को शोभा देता है? भीष्म पितामह को छल से मारा गया था। पहले तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा, "मैं तो आप का पौत्र हुँ।" 

फिर कहा: "ये तो आप ने कुछ नहीं देखा। कलि युग में तो और क्या क्या करने होंगे।" यानि कि भगवान कल्कि को कलि युग समाप्ति के कार्य के दौरान क्या क्या करने पड़ सकते हैं। 

कलि पुरुष ने अनुरोध किया: "हमें रहने के लिए जगह दो।" राजा परिक्षित ने कहा: "कहाँ रहोगे?" जवाब आया: "सोने में रहने दो। पैसे में रहने दो।" और हो गया शुरू कलि युग। 

बाइबल के गॉस्पेल में जिस शब्द का सबसे ज्यादा जिक्र है वो है पैसा। जो इन्सान पैसे को सर्वोपरि मानता है वो अपने लिए स्वर्ग के द्वार बंद कर लेता है। ५,००० साल में पहली बार किसी ने कलि युग समाप्ति का एक रोडमैप लाया है। पुस्तक का नाम है कल्किवादी घोषणापत्र। उसमें पैसारहित समाज के निर्माण की बात है। देश रहेगी, समाज रहेगी, अर्थतंत्र रहेगी, लेकिन पैसा नहीं। जो लोग जानते हैं कलि युग कैसे शुरू हुवा उन्हें समझने में आसानी होगी कि कलि युग समाप्त करने के लिए पैसारहित समाज का निर्माण क्यों जरूरी है।

कलि युग समाप्ति और सत्य युग के शुरुवात की बात हो रही है। और इस बात का जिक्र अलग अलग धर्म के धर्म ग्रन्थों में है। लेकिन आप को बहुत लोग मिल जाएंगे जो उसको गलत समझ रहे हैं। युग के अंत को गलत समझ के धर्ती का ही अंत कह रहे हैं। कह रहे हैं दुनिया ख़त्म हो जाएगा। युग ख़त्म होगा दुनिया नहीं। 

ईश्वर एक हैं। सृष्टि एक तो ईश्वर कितने होंगे? सृष्टि एक तो श्रष्टा कितने? ईश्वर कोइ प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति नहीं कि भारत का प्रधान मंत्री एक आदमी और अमेरिका का राष्ट्रपति कोइ दुसरा आदमी। 

इस्लाम १४०० साल पुराना। इशाई धर्म २,००० साल पुराना। बौद्ध धर्म २५०० साल पुराना। यहुदी धर्म यही कोइ ४,००० साल पुराना। यहुदी भी और चिनिया भी दोनों कहते हैं कि हम बहुत पुराने लोग हैं, हमारी इतिहास बहुत पुरानी है। कितनी पुरानी? दोनों कहते ५,००० साल पुरानी। 

यानि कि सनातन धर्म के अलावे बाँकी प्रमुख धर्म सबके सब इस कलि युग में पैदा हुवे। 

इशाई लोगों को आश्चर्य होता है कि हमने मान लिया जीजस ही मसीहा हैं लेकिन यहुदी क्यों नहीं मान रहे? तो २,००० साल पहले येशु को उनके शिष्यों ने कहा: "आप कहते रहते हो ईश्वर ईश्वर। सिखाओ हमें उस ईश्वर को प्रार्थना कैसे करें।" तो येशु ने जो सिखाया वो इशाई धर्म का सबसे प्रख्यात प्रार्थना है। दुनिया के प्रत्येक देश के प्रत्येक चर्च में प्रत्येक रविवार को वो प्रार्थना करते ही करते हैं। कि हे ईश्वर धरती पर आ जा और सारे धरती का राजा बन जा। यानि कि २,००० साल से दुनिया भर के इशाई वो प्रार्थना करते आ रहे हैं। वो प्रार्थना येशु को लक्षित नहीं है। यानि कि उसमें येशु को नहीं पुकारा जा रहा है। 

यहुदी इजिप्ट में गुलाम थे। उन्होंने ४०० साल तक प्रार्थना की। कि हे ईश्वर हमें इस गुलामी से मुक्ति दिला। उनकी प्रार्थना सुनी गयी। वो सारी कहानी आप बाइबल में पढ़ सकते हैं। २,००० साल से इशाई प्रार्थना कर रहे हैं कि हे ईश्वर धरती पर आ, सारे धरती का राजा बन। 

आप यहुदी को पुछिए। क्यों नहीं मानते तुम येशु को मसीहा? तो वो कहेंगे हमें जिस मसीहा का इंतजार है वो सारे पृथ्वी के अकेले राजा होंगे और दुनिया के कोने कोने तक शांति और समृद्धि ले जाएंगे। येशु राजा नहीं फ़क़ीर था। मरते समय उसके पास संपत्ति के नाम पर फुटी कौड़ी नहीं थी। 

जिस मसीहा का यहुदी को इंतजार है उसी के आने के लिए दुनिया भर के इशाई २,००० साल से प्रार्थना करते आ रहे हैं। कि हे ईश्वर धरती पर आ जा और सारे धरती का राजा बन। यानि कि यहुदी को भी और इशाई को भी उसी एक व्यक्ति का इन्तजार है। 

कल्किवादी घोषणापत्र में दुनिया के कोने कोने तक शांति और समृद्धि ले जाने का रोडमैप है। काम शुरू हो चुका है। उसको लागु करने के लिए नेपाल को पायलट प्रोजेक्ट देश चुना गया है। कल्किवादी घोषणापत्र में एक ऐसे अर्थतंत्र की कल्पना है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति के पास काम है, चाहे वो घर के भितर घर सम्हाल रही महिला हो चाहे और कोइ। प्रत्येक काम का एक ही मुल्यांकन। आप ने आठ घंटे काम किए आप के खाते में आठ घंटे गए। पैसा है ही नहीं। आप को बाजार में जा के कुछ खरीदना है तो किसी चीज का मुल्य रहेगा दो सेकंड, किसी का २० मिनट, किसी का ५० घंटा। बेरोजगारी बिलकुल ख़तम। सबके पास काम। बड़े से बड़े शहरों से छोटे से छोटे गाओं तक एक ही लिविंग स्टैण्डर्ड। महिला पुरुष समानता। गरीबी नामकी कोइ चीज रहेगी नहीं। महँगी ख़तम। आज का एक घंटा जितना होता है १०,००० साल पहले भी उतना ही होता था और १०,००० साल बाद भी उतना ही होगा। 

जिस शांति और समृद्धि का इन्तजार यहुदी को है उसका रोडमैप कल्किवादी घोषणापत्र में क्यों है? और वो सबसे पहले नेपाल में क्यों लागु होने जा रहा है? बाइबल का सबसे प्रख्यात पुस्तक है गॉस्पेल ऑफ़ जॉन। उसके प्रथम दफा में ही कहा गया है येशु ने स्वर्ग और धरती की सृष्टि की। आप किसी भी हिंदु को पुछ लिजिए: "स्वर्ग और धरती की सृष्टि किसने की?" तो वो तुरन्त बोलेंगे: "ब्रम्हा।" 

हिन्दु जानते हैं और मानते हैं कि विष्णु मानव अवतार में बार बार धरती पर आ चुके हैं। राम भी वही, कृष्ण भी वही और बुद्ध भी वही। उनका दशवाँ और अन्तिम मानव अवतार होना है। उनका नाम रहेगा कल्कि। जैसे कृष्ण शब्द का अर्थ होता है काला उसी तरह कल्कि शब्द का अर्थ भी होता है काला। बुद्ध पैदा हुवे तो उनका नाम बुद्ध नहीं था। उनका नाम था सिद्धार्थ गौतम। बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद वे बुद्ध बने। उसी तरह कलि युग समाप्त होने से भगवान कल्कि की भी परिचय स्थापित होती है। लेकिन कलि युग जब समाप्त होगी तब समाप्त होगी। पहले तो एक रोडमैप आएगा। वो आ चुका। एक पुस्तक के रूप में सारी दुनिया को उपलब्ध है। पुस्तकका नाम है कल्किवादी घोषणापत्र। 

हाल ही की सुपर डुपर हिट फिल्म "कल्कि २८९८ एडी" में दिखाया गया है शम्भाला। हिमाली क्षेत्र में कोइ अदृश्य दिवार के पिछे छिपा एक गाओं, एक छोटा सा शहर। शम्भाला। वो क्या है? वो एक ५,००० साल पुरानी भविष्यवाणी को समझने का प्रयास है। भविष्यवाणी है कि जब भगवान कल्कि आएंगे वो शम्भल में पैदा होंगे। तो लोग ढूँढ रहे हैं। कहा गया हिमाली क्षेत्र। लेकिन गलतफहमी ये है कि लोग गाओं शहर ढूँढ रहे हैं। वो शम्भल कोइ गाओं या शहर नहीं, पुरा का पुरा देश है जहाँ अमिताभ बच्चन साहब वर्षों पहले अपने महान फिल्म के शुटिंग के लिए गए थे। शम्भु का देश अर्थात शम्भल। शम्भु का देश, अर्थात पशुपतिनाथ का देश, अर्थात नेपाल। हिमाली भेग में आज कौन सा देश है जिसका नाम शम्भल शब्द से बहुत मिलताजुलता है? पाकिस्तान? भारत? भुटान? तो फिर? 

"कल्कि २८९८ एडी" में दिखाया गया है दीपिका पादुकोण का नाम है सुमति। सुमति क्यों? क्यों कि ५,००० साल पुरानी एक भविष्यवाणी है कि जब भगवान कल्कि आएंगे वे सुमति नाम के औरत के गर्व से पैदा होंगे। यानि कि माँ का नाम सुमति होना है। सुमति शब्द का शाब्दिक अर्थ निकलता है शांति। भगवान कल्कि पैदा हो चुके और उनके माँ का नाम शांति ही है। वे मुझे बहुत अच्छी तरह जानती हैं। 

राम पैदा हुवे अयोध्या। कृष्ण मथुरा। बुद्ध लुम्बिनी। कल्कि मटिहानी। शंकराचार्य बॉर्डर के उस पार बिहार में पैदा हुवे। उनका एक अहं रोल रहेगा इस प्रोजेक्ट में। कलि युग समाप्ति वाले प्रोजेक्ट में। 

भगवान कल्कि जो काम करने जा रहे हैं वो समझना है तो आप अमिताभ बच्चन का "कल्कि २८९८ एडी" नहीं शाहरुख़ खान का जवान देखिए। जवान फिल्म में दिखाया गया है काम कैसे आगे बढ़ेगी। जब कि डायरेक्टर एटली या अभिनेता शाहरुख़ खान ने कोइ कल्कि मुवी बनाइ ही नहीं। उन्हें भी आश्चर्य होगा ये जान के कि जो फिल्म उन्होंने बनाइ वो एक कल्कि मुवी बन गयी। 

भगवान कल्कि सम्बंधित १२ में से ११ भविष्यवाणी भगवान कल्कि में पुरे हो चुके हैं। उससे उनकी परिचय स्थापित होती है। सबसे महत्वपुर्ण बात तो है काम। कलि युग समाप्ति का रोडमैप जो आया है। 

क्रिस्चियन कहते होली फादर, होली सन, होली स्पिरिट। उन्हें ही हिन्दु कहते विष्णु, ब्रम्हा, शिव। यानि कि दुनिया भर के क्रिस्चियन २,००० साल से भगवान विष्णु को पुकार रहे हैं कि हे ईश्वर आ धरती पर राज कर। आप हिन्दुओं को पुछिए: "क्या भगवान विष्णु ने कभी मानव अवतार में धरती पर राजा बन के राज किया है?" राजा राम सिर्फ अयोध्या के राजा थे। भगवान कल्कि सारे पृथ्वी के राजा होंगे। दुनिया के कोने कोने तक शांति और समृद्धि जाएगी। 

हिन्दु कहते बुद्ध भी विष्णु के अवतार। इस बात को बहुत बौद्ध धर्मावलम्बी नहीं मानते। लेकिन वो न मानने वाले प्रत्येक सिद्धार्थ गौतम की कहानी जानते हैं। राजकुमार  सिद्धार्थ गौतम को उनके राजा पिता ने दुनिया के हर संभव सुख शयल दिए ताकि बालक को जोगी बनने का विचार सपने में भी न आवे। लेकिन गौतम जोगी बन गए। उनके पैदा होते ही एक एस्ट्रोलॉजर आ के बोले राजा को: "हे राजन, आपका ये बेटा बहुत विशेष है। या तो ये जोगी बनेगा या तो फिर सारे पृथ्वी का राजा।" राजा को तो राजा चाहिए था।  

पिछले बार जोगी बने। अबकी बार राजा बनेंगे। 

आपने महाभारत टेलीसीरियल अगर देखी है तो गौर किया होगा शुरू में ही एक वाक्य आता है। यदा यदा ही धर्मश्य। यानि कि भगवान श्री कृष्ण गीता में कह रहे हैं: "मैं धर्म के पुनर्स्थापना हेतु प्रत्येक युग में आउंगा।" उनके आने का हिन्दु समाज ५,००० साल से इंतजार कर रही है। वे आ चुके। कलि युग समाप्ति का काम शुरू हो चुका। 

इंडिया का नाम भारत हो चुका। उस भारत का नाम भगवान कल्कि के नाम पर कल्किस्तान होने जा रहा है। मोदी के बाद जो प्रधान मंत्री होंगे वो भारत के अंतिम प्रधान मंत्री होंगे। वर्णन योगी जी से बहुत मिलता है। वो देश भगवान कल्कि को सौंपेंगे। वो कल्किस्तान अभी के भारतवर्ष से बहुत बड़ा होगा। उतना बड़ा होगा जितना बड़ा इतिहास में कभी रहा नहीं। मोदी प्रधान मंत्री पद से हटने के बाद कल्कि प्रोजेक्ट में सम्मिलित हो जाएंगे। 

कल्किवादी घोषणापत्र के लेखन में सहयोग करने वाले काठमाण्डु के दिग्गज अर्थशाष्त्री डॉ उमाशंकर प्रसाद नेपाल के युनुस हैं। बंगलादेश में जिस नाटकीय ढंग से सत्ता परिवर्तन हुवी उससे ज्यादा नाटकीय ढंग से नेपाल में सत्ता परिवर्तन होनी है और डॉ उमाशंकर प्रसाद को नेपाल का राष्ट्राध्यक्ष बनना है और कल्किवादी घोषणापत्र को नेपाल में लागु करना है। पहले नेपाल। उसके बाद भारत और चीन के रास्ते दुनिया के प्रत्येक देश तक पहुँचना है। नेपाल को विश्व गुरु बनना है। 

भगवान कल्कि आ चुके। धरती पर हैं। कलि युग समाप्ति का काम शुरू हो चुका। सहभागी हो जाइए इस युग परिवर्तन के प्रोजेक्ट में।