Showing posts with label holy son. Show all posts
Showing posts with label holy son. Show all posts

Thursday, February 10, 2022

भगवान राम धरती पर पैदा हुवे थे

सारी की सारी धरती उनकी। सारा ब्रह्माण्ड उनका। उस राम भगवान को कोइ एक शहर में सीमित करे, एक मन्दिर में सीमित कर दे, ये कैसी अनहोनी बात हो गयी? राम अवतार में पैदा होने से पहले वो भगवान अदृश्य ही तो थे। किसी के आँख से दिखते नहीं थे। कुरान में जिस अदृश्य ईश्वर का जिक्र है वो ईश्वर कौन? भगवान राम अपने देह त्याग के बाद फिर अदृश्य ही तो हो गए। कह के गए फिर से आऊँगा। आए। उसके दो हजार साल बाद भगवान कृष्ण बन के। फिर से दिखने लगे। अर्जुन ने कहा मैं आपका ईश्वरीय रूप देखना चाहता हुँ। भगवान कृष्ण ने कहा वो सौभाग्य तो स्वर्ग में रह रहे देव देवीयों को भी नहीं मिलता है। फिर भी लो देखो। अर्जुन ने देखा। वहीँ खड़े कुरुक्षेत्र के और किसी ने नहीं देखा। वो देखने के लिए अर्जुन को विशेष रूप से दिव्य दृष्टि दिया गया। अर्जुन डर गए। अर्जुन ने कहा मेरे को डर लग रहा है आप वापस मानवीय रूप में आ जाइए। आ गए। अर्जुन का वही अनुरोध तो है कि महादेव मानव शरीर में दिखे धरती पर। राम और कृष्ण। ब्रम्ह के मानव अवतार येशु। ताकि लोग डर न जाए। 

भारतवर्ष में ही पहले लोगों को वर्षात के देव को पुजा करने की अनुमति दी गयी। ईश्वर की कल्पना उनके परे थी। लेकिन एक समय आया जब ईश्वर ने कहा वर्षा के देव का भी देव तो मैं हुँ। ईश्वर तो मैं हुँ। सच्चा ईश्वर। 

किसी ने समुन्दर कभी देखा ही ना हो और उसे समझाना पड़े समुन्दर आखिर है क्या? तो अँजुली में पानी रख के दिखाना पड़ेगा। समुन्दर में पानी होता है लेकिन इससे बहुत ज्यादा। वो अँजुली का पानी होते हैं ईश्वर के मानव अवतार। मानव शरीर धरती तक सीमित है लेकिन मानव मष्तिष्क ब्रम्हांड के कोने कोने तक पहुँच गयी है। ब्रम्हांड बहुत ही बड़ा है लेकिन अनन्त नहीं। ईश्वर अनन्त हैं। 

भगवान कृष्ण ने कहा है मेरे अनन्त ज्ञान का थोड़ा सा अंश इस गीता में है। वो सिर्फ गीता पर नहीं प्रत्येक धर्म ग्रन्थ पर लागु होता है। लेकिन लोग झगड़ने लगते हैं। तुम्हारा ईश्वर मेरे किताब में है ही नहीं। जो ईश्वर सारे ब्रम्हांड से बड़े हों उन्हें एक शहर विशेष में सीमित करने की सोंच चरम नास्तिकता है।  

जिस ईश्वर का ज्ञान सारे ब्रम्हांड में भी ना सीमित हो सके उस ईश्वर के ज्ञान को किसी एक पुस्तक में सीमित समझना ईश्वर को ना समझना है। 

घृणा नहीं प्रेम ईश्वर की भाषा है। समस्त मानवजाति ईश्वर के हैं। अपना पराया करने वाले ईश्वर के नहीं हो सकते। 

भारत २०० साल उपनिवेश का शिकार हुवा जरूर। लेकिन यहुदी तो इजिप्ट में ४०० साल गुलाम रहे। उन्हें कहा गया तुम्हें मुक्त करूँगा लेकिन याद रहे तुम किसी को गुलाम मत बनाना। वो सबक भारत को भी सिखना होगा। औरो की गलती मत दुहराओ।  
  
पाण्डव सपने में कलयुग के कुछ दृश्य देखते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता। भगवान कृष्ण को समझाना पड़ता है। आज के लोगों को महाभारत के ढेर घटनाएं अजीब लगते हैं। कि ऐसा हुवा होगा क्या? कोइ तितली जो सिर्फ गर्मी के कुछ हप्ते जिए उसे जाड़े का मौसम समझाना कठिन काम होगा। बर्फ गिरती है। कैसी बर्फ? तितली पुछेगी। वो संभव नहीं। 

ब्राह्मण इस लिए ब्राम्हण होता है कि मानवीय समाज में ईश्वर के आराधना का उतना ज्यादा महत्व है। लेकिन जो ब्राह्मण ईश्वर की बात ना माने वो ब्राह्मण हुवा कैसे? गीता में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट कहा है, चाहे व्यक्ति किसी भी जात का हो उससे समान व्यवहार करो। 

पुँजीवाद का जो सिध्दांत है उसका दुसरा पहिया है लोकतंत्र। राजनीतिक समानता उस पुँजीवाद का मेरुदण्ड होता है। समाज में असमानता बढ़ जाए वो समाज कितना भी समृद्ध क्यों न हो जाए ढह जाएगा। राजनीतिक समानता का मतलब ये नहीं कि सब का कमाइ बराबर हो। थोड़ा कम बेस तो होगा ही। राजनीतिक समानता का अर्थ सम्मान और अधिकार से जुड़ा होता है। 

सारा धरती भगवान राम का। भगवान राम को अयोध्या में सीमित मत करो। प्रेम भाषा भगवान राम का। राम नाम जपो तो घृणा मत बोलो। हिन्दु कहते भगवान राम बड़ा। कोइ क्रिस्चियन कहते येशु बड़ा। आखिर कौन बड़ा? उसका जवाब खुद येशु ने बाइबल में दिया हुवा है।