Monday, May 11, 2015

जितन और पप्पु ने बिहार को पेंचिंदा बनाया

जीतन राम माझी का नीतिश से अलग हो जाना, पप्पु यादव का लालु से अलग हो जाना ------- अब तो बिहार का contest triangular हो चला और बीजेपी का पलड़ा भारी सा हो गया है। ये दोनों भले न जिते लेकिन वोट तो काटेंगे जरूर। Advantage BJP? जितन और पप्पु ने बिहार को पेंचिंदा बनाया।

बीजेपी को लेकिन इस बात का घाटा है कि वो किसी एक को मुख्य मंत्री पद के लिए सामने नहीं ला रहे हैं।

मंडल तो मोदी खुद मंडल। दोनों development men --- क्या JD(U) और BJP फिर से एक साथ नहीं आ सकते क्या?

नीतिश वैसे master strategist हैं। Caste equation में खुद मंडल man लालु को मात कर दिया दो दो बार। दलित और महादलित कर के लालु और पासवान दोनों को मात कर दिया दो दो बार।

मेरे को लगता है सुशील मोदी अभी भी नीतिश का लोहा मानते हैं। अभी भी वो शायद नंबर टु होने को तैयार हो जाए। लेकिन बात शायद बहुत आगे बढ़ चुका है। There are stakeholders in both camps who do not want a rapprochement. The fact remains that the JD(U)-BJP government in Bihar was a pretty good government.

BJP इतनी बड़ी पार्टी है कि उसमें तरह तरह के लोगों का होना स्वाभाविक है। जब RSS के कुछ लोगों ने लव जिहाद और घर वापसी की बात की तो मैंने अपना मुँह बिचकाया। तो मोदी ने भी तो अपना मुँह बिचकाया। जब मोदी गुजरात के मुख्य मंत्री थे तो उन्होंने वहां पर बहुत बखुबी से RSS को sideline कर के रख दिया था। उनका मानना था कि राजनीति करनी है तो RSS से बीजेपी में आ जाओ और चुनाव लड़ो, जित के दिखाओ, तब दिन भर राजनीति करते रहो।

जिस Hindu supremacist thinking को देख के नीतिश मुँह बिचकाते हैं, उसको देख के तो मोदी भी मुँह बिचकाते हैं। और देश में सबसे बड़ा मंडल तो मोदी ही है। और दोनों development के मामले में सबसे आगे रहे हैं।

But perhaps Nitish has waded too far. उनके ही शब्दो में "अब तो गुंजायस नहीं है। "

It is still 50-50 in Bihar, it could go either way. But Jitan and Pappu walking away weakens the chances of a Nitish comeback. नीतिश ने २०१३ में जो निर्णय लिया क्या वो hubris था? Perhaps he gambled, कि मोदी का डट के विरोध करो तो बिहार के २०% मुसलमान साथ में आ जाएंगे। लेकिन वो हुवा नहीं।
“Na Khuda hi mila, na visaal-e-sanam/Na udhar kay rahay, na idhar kay rahe (I found neither faith, nor union with my lover/And now I belong neither there nor here).”


Sunday, May 10, 2015

बिहार का मामला

बिहार में नीतिश का पोजीशन दिल्ली में केजरी के जैसा नहीं है --- फिर भी मजबुत तो है। २०१४ में प्रधान मंत्री पद के लिए मोदी के अलावे और कोइ लड़ ही नहीं रहा था। मैदान में कोइ और था ही नहीं। अभी बिहार में नीतिश अकेले कैंडिडेट हैं मुख्य मंत्री के। बीजेपी का कोइ कैंडिडेट नहीं है। जितन तो सिर्फ वोट काट्ने के फिराक में हैं। उनको लोभ है कि हंग असेंबली आ जाए किसी तरह तो बीजेपी वाले शायद भाव दें, अभी तो नहीं दे रहे हैं।

नीतिश ने शायद गलती की --- जब वो २०१३ में बीजेपी से बिहार में टुट गए। उसके बाद गलती किए मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। दो दो बार जनता के मैंडेट का अपमान हुवा। अभी भी नवीन का लाइन मेरे को ठीक लग रहा है। वो knee jerk opposition के पक्ष में नहीं हैं। कांग्रेस के पास दुसरा ऑप्शन नहीं हैं। उनको तो knee jerk opposition ही करना होगा। लोकतंत्र का असुल है। लेकिन नवीन उसमें नहीं फँसना चाहते। वो thoughtful opposition का रोल अदा करना चाहते हैं।

नीतिश क्या चाहते हैं? वो चाहते थे मोदी न आवे, आडवाणी आवे, हिन्दु rate of growth को बरक़रार रखे। बीजेपी ने आडवाणी को sideline किया तो इन्होने पगड़ी पहना दी मुलायम को। बीजेपी में अडवाणी और जनता परिवार में मुलायम --- दोनों ही हिन्दु rate of growth वाले हैं।

ये आश्चर्य की बात है। नीतिश खुद development man हैं। फिर?

बिल क्लिंटन का कहना है ---- all elections are about the future. पिछे जो किए सो किए। अब आगे क्या करेंगे -- ये नीतिश को कहना है।

Laloo was the best Railway Minister India ever had. लालु ने १,००० साल पुरानी कास्ट सिस्टम को चैलेंज किया, छोटी मोटी बात नहीं है। उनके समय के शिक्षा मंत्री, और कितने सालों से उनके पार्टी के बिहार यूनिट के प्रमुख (एक ही तो स्टेट यूनिट है) मेरे मामा लगेंगे: रामचन्द्र पुर्वे। मेरी पैदाइश बिहार की है --- दरभंगा।

Nitish has been the best Bihari Chief Minister of my lifetime. But he is about to face his toughest election since 2005.

बिहार का मामला पेंचीदा है। Right now I think it is 50-50. It could go either way.

लेकिन सिर्फ सुशासन कहने से नहीं होगा। विकास का भविष्यमुखी एजेंडा देना होगा जनता को।

२०१४ में बिहार के लोगों ने मोदी को वोट दिया -- गलती नहीं किया। मोदी अच्छा काम कर रहे हैं।

In the market the consumer is always right. That is the premise. In an election, the voters are always right. That has to be the premise.