Sunday, August 11, 2019

काश्मीर समस्या का समाधान कर्फ्यु और मार्शल लॉ नहीं हो सकता

इतिहास में क्या है उसी के तहत समस्या का समाधान ढुंढते रह जाएँगे तो फिर इतिहास में तो सब कुछ है। इतिहास में काश्मीर भारतका भी है और पाकिस्तान का भी। इतिहास में काश्मीर स्वतन्त्र देश भी है। इतिहास में भारत देश है भी और नहीं भी है। इतिहास में पाकिस्तान है भी और नहीं भी है। सिर्फ इतिहास को जिक्र कर के समस्या का समाधान ढूँढा नहीं जा सकता। इतिहास में तो एक से अनेक घाव हैं। पुरानी घावों को आप ताजा करेंगे?

इतिहास को बिलकुल नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। लेकिन आपको सिद्धान्त पर चलना होगा। समस्या का समाधान सिद्धान्त पर चल के भी कठिन है लेकिन संभव है। कौन सा सिद्धान्त? कैसा सिद्धान्त? दुनियाकी सबसे बड़ी लोकतन्त्र का सिद्धान्त और क्या हो सकता है? लोकतन्त्र का सिद्धान्त।

जो लोकतन्त्र को मानते हैं वो ये मानते हैं कि ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को बराबर का बनाया है। उसी सिद्धान्त के गणित को एक व्यक्ति एक मत भी कहते हैं। लेकिन लोकतन्त्र का मतलब बहुमत जो चाहे वो कर ले ये नहीं निकलता। लोकतन्त्र व्यक्ति से सम्बन्धित है। आप कह रहे हैं कि प्रत्येक मनुष्य के कुछ आधारभुत अधिकार होते हैं। उन अधिकारों को बहुमत तो क्या पुर्ण मत से भी नहीं छिन सकते हैं।

ये रियल इस्टेट की बात नहीं है। लोकतन्त्र का जमीन से सम्बन्ध होता तो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतन्त्र भारतको नहीं माना जाता। छोटा सा देश भारत। भारत से लगभग तीन गुना बड़ा सहारा मरुभूमि है। सहारा को ही भारत से बड़ा लोकतन्त्र या देश कहते लोग। नहीं कहते हैं।

काश्मीर का मसला जमीन का नहीं है। काश्मीर का मसला वहाँ के अवाम से है।

एक होती है जमीनी यथार्थ। एक होती है क्लेम। यथार्थ है लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल। क्लेम है कि पाकिस्तान और भारत दोनों पुरे के पुरे काश्मीर को क्लेम करते हैं। जब तक दोनों वो क्लेम करते रहेंगे टेंशन बना रहेगा। टेंशन बना रहेगा तो दोनों देशो में गरीबी बनी रहेगी। जितने गरीब लोग भारतके भितर हैं उतने दुनिका के किसी देश में नहीं।

गृह मंत्री कह रहे हैं ३७० हटा दिया। अब पाकिस्तान के अधीन जो काश्मीर है वो भी लेंगे। अक्साइ चीन भी लेंगे। कैसे लेंगे? ३७० तो हटाया बल प्रयोग कर के। बाँकी काश्मीर और अक्साइ चीन लेने के लिए पाकिस्तान और चीन से युद्ध करेंगे क्या? वो भी जानते हैं कि युद्ध असंभव है। बाँकी काश्मीर और अक्साइ चीन भारतका हो जाना असंभव बात नहीं है। लेकिन वहाँ तक पहुँचने का रास्ता युद्ध नहीं है। तीनो देश बातचीत करें। शायद रास्ता निकल जाए। आप ५० या १०० सालका टाईमटेबल निकालिए। शायद रास्ता निकल जाए।

नहीं अगर निकट भविष्य में ही हल निकालना चाहते हैं तो लोगों को इस तरह गुमराह मत किजिए।

जो लोकतन्त्र बिहार या महाराष्ट्र में है वही लोकतंत्र काश्मीर को भी दे सकते हैं तो कुछ हद तक माना जा सकता है कि चलो अकेले जितना कर सके किए। नहीं तो ये तो तानाशाही बात हो गयी। ये फ़ासिस्ट कदम हो गया।

वार्ता में होता है पॉस्चरिंग। थोड़ा बढ़चढ़ के बोलना होता है। बाद में वार्ता के दौरान थोड़ा पिछे हट जाते हैं और डील करते हैं।

ये जो कदम है ये स्थायी समाधान नहीं है। अस्थायी समाधान भी है कि नहीं ये कुछ समय बितने पर पता चलेगा। स्थायी समाधान है वार्ता। वार्ता किजिए। पाकिस्तान से। चीन से। फोर्मुला तो यही है कि तीनों देश लाइन ऑफ़ कन्ट्रोल को स्थायी सीमा मान लें और व्यापार पर फोकस करें। ताकि गरीबी को हटाया जा सके।


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