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Friday, March 04, 2016

लैंड बिल और आरक्षण

पटेल तो गुजरात के रूलिंग क्लास हुवे, नहीं? तो फिर रूलिंग क्लास को आरक्षण क्यों चाहिए? जाट जमीन जायदाद वाले लोग। वो भी कह रहे हैं आरक्षण।

लेकिन वो आरक्षण नहीं कह रहे हैं। वो कह रहे हैं नौकरी दो। नौकरी यानि की job ---- white collar job. तो क्या होता है कि समाजवाद में नौकरी कौन देता है? गवर्नमेंट। तो इस लिए लोग आरक्षण आरक्षण कर रहे हैं।

पटेल भी जाट भी कह रहे हैं अब खेतीपाती में दम नहीं रह गया। कोई छोटी बड़ी नौकरी ही दे दो।

तो यार वही तो है लैंड बिल। कि खेतीपाती में अब दम नहीं रह गया। अब industrialization करो ताकि लोगों को नौकरी मिल सके। लैंड बिल भी और लेबर बिल भी।

समाजवाद में होता है कि एक बार नौकरी मिल गयी बस बैठे रहो वहाँ पर रिटायर होने तक। तो लोग कहते हैं, नौकरी दो, या सरकारी नौकरी या प्राइवेट मतलब नहीं, लेकिन जॉब गारंटी होनी चाहिए। प्राइवेट सेक्टर में तो वैसा नहीं होता। एक इंटरप्रेन्योर को अगर आप के रखने से फायदा नहीं तो वो रखेगा क्युं। उसके पैसे न भगवान से आ रहे ना सरकार से। सिर्फ कंपनी के revenue के पैसे हैं। तो जॉब गारंटी तो होता ही नहीं। प्राइवेट में होता है hire and fire at whim. लेकिन ये होता है कि आप के विरुद्ध discriminate नहीं कर सकते। ये नहीं कह सकते कि मुसलमान हो इस लिए नहीं लेंगे। तब तो वो जेल जायेंगे। या फाइन होगा।

तो कहते हैं समाजवाद में वैसा नहीं होता। नौकरी की गारंटी करो। यहाँ तक कि प्राइवेट में भी आरक्षण!

तो ये एक War Of Words है जो बीजेपी वाले लड़ नहीं रहे। लैंड बिल के समय किसी ने अमित शाह को कह दिया कि हल्ला है आप गरीब किसानों की जमीन उद्योगपतियों को देना चाहते हैं। तो अमित शाह ने कह दिया एक इंच भी जमीन किसी उद्योगपति को नहीं मिलेगा।

उद्योगपति को नहीं मिलेगा तो फिर किसको मिलेगा? उसी उद्योगपति को देने के लिए तो हो रही थी रस्साकस्सी। उद्योगपति को नहीं मिलेगा तो फिर औद्योगीकरण कौन करेगा? Jobs कैसे create होंगे? किसको दहेज़ में देनी थी जमीन?

जाट भाइयों ने बस उड़ा ही दिया। ये देखो लैंड बिल। नहर बिल।

एक War Of Words है जो बीजेपी को लड़ना होगा। कि आप जो नौकरी नौकरी किये हो वो सरकार से आने वाली नहीं। वो जहाँ से आएगी उसके लिए लैंड बिल भी और लेबर बिल भी चाहिए। फैक्ट्री  लगाने के लिए जमीन की जरुरत होती है। और नौकरी आप की कब लगेगी कब चली जाएगी वो सिर्फ उस कंपनी के मालिक को निर्णय लेना होता है। उसमें और किसी की या सरकार की दाल नहीं गलती।

RSS वाले बहुत उर्जा दिखाते रहते हैं। तो उन्हें प्रोजेक्ट दो। एक बिलियन हिन्दु को एक casteless Hinduism में कन्वर्ट करो। उससे भी उर्जा बच जाए तो उसके बाद जाओ दुनिया घुमो और प्रत्येक महादेश पर हिन्दु का संख्या बढ़ाओ। सुबह सुबह दंड बैठकी करने का कुछ तो फायदा होना चाहिए कि नहीं?

और एक बात है इंफ्रास्ट्रक्चर की। बिजली सड़क को कहते हैं इंफ्रास्ट्रक्चर। लेकिन access to credit भी तो इंफ्रास्ट्रक्चर है और सबसे नंबर एक है महत्व के हिसाब से। बायोमेट्रिक आईडी भी है और अब बैंक अकाउंट भी। तो बगैर कोलैटरल का लोन दो। ताकि लोग छोटी मोटी बिजनेस शुरू कर सके। अमरिका में भी सबसे ज्यादा जॉब क्रिएशन होता है स्मॉल बिजनेस द्वारा ही। १०-२० लोग को खटाने वाले बिजनेस ही सबसे  ज्यादा लोगों को नौकरी देते हैं। तो अभी उस small business sector को भारत में informal sector कह के डिसमिस कर देते हैं। वो सोचीसमझी साजिश है बड़े उद्योगपतियों की ताकि बैंक लोन सिर्फ उन्हें मिले। जब कि सबसे ज्यादा फोकस होना चाहिए उसी small business sector पर। Access to credit नंबर वन बात है।

मोहन भागवत कहना चाह रहे थे कि जातपात खत्म करो लेकिन मुँह से धोखे से निकल गया आरक्षण ख़त्म करो।


नीतिश के दो Blind Spots

पहला FDI, और हाल ही में मेरे को दिखा दुसरा मधेस।

मोदी के उदय से पहले मेरे को लगता था मधेस और मधेसी शब्द दिल्ली के डिक्शनरी में है ही नहीं। ये नहीं की केयर नहीं करते या बुरे लोग हैं। उनको मालुम ही नहीं कि इस दुनिया में मधेसी हैं भी। जैसे कि मेरे को लगता है मैडागास्कर में मालुम नहीं होगा कि मधेसी भी हैं कहीं। इसका मतलब वो बुरे लोग हैं ऐसी बात नहीं। 

नीतिश काठमाण्डु आए। बातचीत से लगता है मैडागास्कर से आए हैं। बिलकुल अनभिज्ञ हैं। पुछ रहे हैं रावणों से, मधेस आंदोलन के बारे में बताइए। तो प्रचंड ने नीतिश से मिलने के बाद वक्तव्य निकलवाया कि नीतिश ने कहा अब तक नेपाल में जो हुवा आप ही के नेतृत्व में हुवा और आगे भी आप ही के नेतृत्व में होगा। नीतिश ऐसा बोले होंगे मेरे को नहीं लगता। लेकिन प्रचंड ने one party dictatorship का थिंकिंग कभी छोड़ा ही नहीं। देश में कोई प्रधान मंत्री आ जाए उन्हें लगता रहता है देश मेरे ही नेतृत्व में आगे बढ़ रहा है।

प्रचंड ने नीतिश को मधेसी समझ के हेप के बात किया। Patronizing tone में। राडार पर उतना को दिखना चाहिए कि नहीं कि इस आदमी ने मेरे से किस टोन में बात किया? 

समाजवाद में होता है पैसा केंद्र सरकार से माँगो। देगा तो नहीं। तो फिर रैलियां निकालो। प्रेस में जा के हल्ला करो। मोदी के सरदार पटेलवाद में होता है कि FDI से लाओ पैसा। गारंटी आएगा। तो जिस तरह मोदी मुख्य मंत्री थे तो सालाना गुजरात समिट करते थे। बिहार में भी करना चाहिए। पैसा आने का वही एक तरिका है। और वो फॉरेन ऐड से बेहतर होता है। 

पड़ोस में रहते हैं लेकिन नीतिश मधेसी से इतने अनभिज्ञ! 

और इनकी ग्रैंड अलायन्स की गाडी बिहार में अटक गयी। राहुल क्रेडिट ले रहे हैं। कि हम ने बिहार में कर दिखाया। अब असम और उत्तर प्रदेश में भी कर दिखाएंगे। असम तो मेरे को मालुम नहीं लेकिन उत्तर प्रदेश में तो आपका दुकान भी नहीं। 

मधेसको पहचानना ज्यादा जरुरी नहीं। लेकिन नीतिश FDI को ना पहचाने तो या तो अलायन्स टुट जाएगी या तो अगला चुनाव हार जायेंगे बिहारमें।